सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Thursday, June 26, 2014

ईशोपनिषद मंत्र -८

स पर्य गाच्छुक्रम्कायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविधम । 
कविर्मनीषि परिभूः स्वयम्भू र्याथातथ्यतोर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः  II 8 II 
                             
हर जगह छाया हुआ वहपर हमें दिखता नहीं 
पहुँचता वह हर समय है , पर हमें मिलता नहीं

शुद्ध है निर्मल है वह, ना कोई तन-देह है
कोई नस नाड़ी नहीं , फिर भी ना संदेह है
आता जाता हर जगह है, फिर भी वह चलता नहीं

ना कोई कर्ता है उसका , ना कोई कारण कहीं 
श्रृष्टि का निर्माण करता, करता वह धारण जमीं 
भूमि हिल जाती है कतिपय , वह मगर हिलता नहीं  

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