सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Wednesday, June 19, 2013

ईशावास्योपनिषद मन्त्र -7



यस्मिन्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः । 
तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः  II 7II 


One who is in full knowledge and spiritual wisdom – the whole world becomes one and a part of the Supreme Lord; for him there is no illusion or delusion nor is there any sorrow. 


                                
क्या मोह करूँ 
क्या शोक करूँ 
सब कुछ मेरा 
सब कुछ तेरा 

जब भेद नहीं 
मतभेद नहीं 
फिर राग नहीं 
फिर द्वेष नहीं 

जब मैं सब में 
जब तू सब में 
फिर कष्ट  कहाँ 
फिर दुःख कहाँ 

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