सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Saturday, February 5, 2011

अग्नि देव का आह्वान

ओम अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् I
युयोधस्म्ज्जुहराण मेनो भुइष्ठान  ते नमः उक्तिं विधेम II

( यजुर्वेद ५/३६ ; ४०/१६ ; ७/४३ )


O Agni (fire) ! The effulgent power of the universe ! Lead us all by the path of correctness . O Deva ! You and only you know what is right and good . Help us in fighting out the wicked , evil and sinful deeds out of ourselves . We utter these words with our utmost humbleness , again and again .


हो ज्ञान के भण्डार तुम , हो दिव्य पालनहार तुम
तुम कर्म सबके जानते , धन धान्य के आगार तुम

हम तुच्छ प्राणी विश्व के,  हैं हाथ फैलाये खड़े
कर दो सुखी संसार तुम , ऐश्वर्य के भण्डार तुम
तुम कर्म सबके जानते , धन धान्य के आगार तुम

दुर्बुद्धि को हर लीजिये , दुखों से मुक्ति दीजिये
करते हो बेडा पार तुम , हो विश्व के करतार तुम
तुम कर्म सबके जानते , धन धान्य के आगार तुम

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