सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Thursday, June 26, 2014

ईशोपनिषद मन्त्र -१६

अग्ने नये सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । 
युयोध्यस्म्ज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां  ते नम उक्तिं विधेम II 16 II 

हो ज्ञान के भण्डार तुम , हो दिव्य पालनहार तुम 
तुम कर्म सबके जानते , धन धान्य के आगार तुम 

हम तुच्छ प्राणी विश्व के , हैं हाथ फैलाये खड़े 
कर दो सुखी संसार तुम , ऐश्वर्य के भण्डार तुम 

दुर्बुद्धि को हर लीजिये , दुखों से मुक्ति दीजिये 
करते हो बेडा पार तुम , हो विश्व के करतार तुम 

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