सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Thursday, June 26, 2014

ईशोपनिषद मन्त्र -९

अन्धन्तमः प्रविशन्ति ये सम्भूति मुपासते । 
ततो भूय इव ते तमो य उ सम्भूत्यां रताः II 9 II 

बस प्रकृति  को ही जानते 
बस सत्य उसको मानते 
जो पूजते जड़ प्रकृति को
सच मानते इस प्रवृति को 
वो डूबते संसार में 
वो डूबते अंधकार में !

जो ढूंढते हैं सृष्टि में 
अपनी ही कल्पित दृष्टि में 
उस शक्ति दिव्य स्वरुप को 
इक कल्पना के रूप को 
वो भी हैं यूँ कुछ अटकते 
अंधकार में ही भटकते !

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