सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Saturday, January 29, 2011

पृथ्वी स्तुति

ओम् विश्वम्भरा वसुधानि प्रतिष्ठा हिरन्यवक्षा जगतः निवेशनी I
वैश्वानरं विभ्रती भूमिः अग्निं इन्द्र ऋषभाः द्रविणे नः दधातु II

Fulfilling the needs of everyone , holding within herself all kinds of wealth , mobile yet firm and stable , containing gold within her like a deep breath in chest , sheltering all that moves and has its being , bearing fire within , which is useful for the whole of mankind , let such benevolent Earth whose lord is Indra make us wealthy with her blessings .

हे वसुंधरा ! माँ वसुंधरा !
कितना तुमने है धीर धरा !

धारण करती इस सृष्टि   को
सब पर करती धन वृष्टि को
चलती रहती पर ना हिलती
तू है कितनी गंभीर धरा !

तेरे अन्दर सोना चाँदी
जैसे सांसे भरती छाती
सारे प्राणी , कहते वाणी 
सुख दे माता , दे प्यार तेरा !   

(अथर्व १२/१/६ )

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