सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Friday, April 15, 2011

ईश्वर के विभिन्न रूप

औम प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना
प्रातर्भगं पूष्णं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः साममुतरुद्रं  हुवेम !!  
- यजु ३४/१४
 
We meditate God in the morning in the form of Fire- the Agni ;in the form of Power - the Indra ; in the form of Friend and Companion - the Mitravaruna ; in the form of Good Health - the Ashvino; in te form of Growth - the Bhaga ; in the form of Great Protector - the Posha ; in the form of Great Knowledge - the Brahmanaspati ; in the form of Peace- the Soma and in the form of Glorious Fighter- the Rudra.
 
फिर आई एक नयी सुबह , फिर मन में नव उल्लास हुआ
आँखों ने देखा तेज रूप , जब चमकीला आकाश हुआ
 
सुन्दरता पृथ्वी पर बिखरी , ऐश्वर्य रूप ईश्वर का यह 
हम सबको मिलता है सामान , न्यायी ईश्वर आभास  हुआ
 
रोगों का वह करता विनाश , दुष्टों का करता सर्वनाश 
वह भाग्यविधाता पोषक है , हर वक़्त हमारे पास हुआ
 
वह ज्ञानरूप वह ज्ञाता  है, वह शांति रूप . वह त्राता है
वह रौद्र-रूप, वह सोम-रूप , कण कण क्षण क्षण में वास हुआ