सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Thursday, January 6, 2011

जीवेम शरदः शतं I

ओम् तत् चक्षुः देव हितं पुरस्तात शुकं उच्चरत  I 
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं I 
श्र्णुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं I 
अदीनः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् II
- यजु. ३६/२४

He is the seer of all , benefactor of the righteous . ever present , illuminating eye of the world has arisen in pure form before us. With his kind grace , we may see for a hundred years, may we live for a hundred years , may we hear for a hundred years , may we speak for a hundred years , may we live without suffering and humiliation for a hundred years and beyond that .

ब्रह्माण्ड तेरा रूप है , यह विश्व तेरा क्षेत्र है
इस विश्व को है देखता , सूरज तुम्हारा नेत्र है

हम भी इसे देखें प्रभु, सौ वर्ष तक देखें प्रभु
आँखों में तेरा तेज है , हर दृश्य तेरा चित्र है

सौ वर्ष तक इन कानों से हम , तेरे सुने गुण गान हम
तू ही हमारा इष्ट है , तू ही हमारा मित्र है

शत वर्ष तेरी भक्ति हो , रोगों से हरदम मुक्ति हो
तेरी शरण में है पिता , तू ही दयालु पितृ है
                               .

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