सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Thursday, June 26, 2014

ईशोपनिषद मन्त्र -१५

वायुरनिलम मृतमथेदं भस्मान्तं शरीरम् । 
औम् ऋतो स्मर । क्लिवे स्मर । कृतं स्मर II 15 II 

पञ्च महाभूतों से निर्मित 
तन - जिसमें तल्लीन है 
पञ्च महाभूतों में इक दिन 
मिल कर होय विलीन हैं 

उस क्षण को तू सोच अभी ले 
प्राण पखेरू जाते जब 
जीवन को तू उसी सोच से 
यूँ परिपक्व बना ले अब 

सब कुछ नश्वर है तेरा बस 
अमर आत्मा होती है 
उत्तम कर्म सुमर  जीवन के 
वो  निधि संचित होती है 
इस शरीर के बाद नहीं है 
इस शरीर का मान रे 
यात्रा का अंतिम पड़ाव है 
सब का ही शमशान रे 

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