सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Wednesday, September 21, 2011

सर्वव्यापक ईश्वर

औम् यः तिष्ठति चरित, यः च वञ्चति, यः निलयं चरति , यः प्रतकं  I 
द्वौ संनिषध्य यत् मन्त्रयेते ,राजा तद् वेद वरुणः तृतीयः II 
अथर्व ४/१६/२
You are being watched when you move, when you stand or even when you ar up to some mischief .When two persons are in a private discussion or to conspire against someone , there is a third who is present there. They do not realise that the third invisible is God who is aware of everything .
संसार चलता जा रहा , सागर मचलता जा रहा
हैं कौन ये सब कर रहा , कोई तो है, कोई तो है I
वह चल रहा , वह फिर रहा, फिर भी है वो स्थिर रहा
वह हर कहीं छाया हुआ, कोई तो है , कोई तो है I
हम कर रहे कुछ गुप्त है , वह देखता पर लुप्त है
कुछ भी नहीं जिससे छुपा , कोई तो है कोई तो है