सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Sunday, June 16, 2013

ईशावास्योपनिषद मन्त्र -4



अनेजदेकम् मनसो जवीयो नैनद्दवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत् । 
तध्दावतो न्यानतेति  तिष्ठ्त्त स्मन्न्पो मातरिश्वा दधाति II 4 II  



He, the Supreme Lord  does not move, yet he is faster than even mind; he can never be felt by human senses because he is way ahead of their capabilities; he remains static yet he overtakes all those sprinters with great speeds; only the soul can get the knowledge of all his actions with their efforts.



तीव्र है गति आँधियों की , तीव्रतर तूफ़ान
तीव्रतम  मन - ईश पर , उससे भी वेगवान 

वह खड़ा भी भागता है , भागता भी खड़ा 
इन्द्रियां करती न अनुभव , इन्द्रियों से बड़ा 

जल है भारी , वायु हलकी , फिर भी है बादल 
वायु को सामर्थ्य देता , बादलों को  जल 

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