सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Thursday, August 12, 2010

अग्नि प्रार्थना

अग्निमीडे पुरोहितं यज्यस्यदेव मृत्विजं होतारं रत्नधात मम । -ऋग्वेद

I worship agni, the destroyer of all evils ,the source of life and the face of Almighty God in its three forms- physical, psychological and spiritual. Let the agni which is burning in front of me , guide me in my life, treating it as a sacrifice with the end object being the attainment of the highest and the purest of human life- as materially the object is the possession of wealth of every man.


हे अग्नि जलो ,संताप हरो
जीवन में प्रभु, ये तेज भरो


यह अग्नि रूप ,सूरज सी धूप
ईश्वर समान, है विद्यमान
पूजा मेरी स्वीकार करो


अंतर की आग ,सुख दुःख विराग
ऋतुओं का चक्र ,सब सरल वक्र
एश्वर्य मेरे भंडार भरो

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