सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Saturday, February 4, 2012

ईश्वर की रचना


औम् यस्य इमे हिमवन्तः महित्वा यस्य समुद्रं रस्य सः आहुः !
यस्य इमाः प्रदिशः यस्य बाहुः कस्मै देवाय हविषा विधेम !!
औम् येन धौः उग्राः पृथिवी च दृढा येन स्वः स्तभितं येन नाकः !!
औम् यः अन्तरिक्षे रजसः विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम !!
ऋग - १०/१२१/४ 

Whose grandeur - these snow clad mountains proclaim ; whose grandeur is proclaimed by all the directions , which are spread out like his arms ; whom else shall we offer prayers if not to 'Him.' Whose anger   may make the firmament violent , whose mercy keeps this earth so steady in spite of its tremendous movement, whose directions are controlling the rotations and movements of the entire solar system , who is keeping all the stars and the planets like suspended particles of dust in air ; whom else do we offer our prayers other than 'Him' !

ये हिम से ढके हुए पर्वत 
उछलती सागर की धरा 
दिशाएं फैली बाँहों सी 
क्षितिज तक जाती राहों सी 

घुमाता अन्तरिक्ष को वह 
नियंत्रित करता हर ग्रह को
चंद्रमा सूरज और तारे 
चल रहे बंदिश में सारे 

झुकाएं क्योंकर सर ना हम 
शरण कैसे ना जाएँ  हम
न गायें उसके क्योंकर गान 
वही बस एक है एक महान  

No comments:

Post a Comment