औम सः परि अगात् , शुक्रम , अकायम , अव्रणम् , अस्नाविरं , शुद्धम् , अपापविद्धं , कविः , मनीषी , परिभूः, स्वयम्भू : याथा तथ्यतः अर्थान् , व्यदधात , शाश्वतिभ्यः संबह्य I
-ऋग्वेद
He is omnipresent . He is purest . He is bodiless - hence he can have no wounds .He has no muscles and no nerves . He is beyond virtues or vices . He is not created by anyone nor for any specific purpose . He knows all . He witnesses everything . He created the earth and the universe the way we see it .
हर जगह छाया हुआ वह, पर हमें दिखता नहीं
पहुँचता वह हर समय है , पर हमें मिलता नहीं
शुद्ध है निर्मल है वह, ना कोई तन-देह है
कोई नस नाड़ी नहीं , फिर भी ना संदेह है
आता जाता हर जगह है, फिर भी वह चलता नहीं
ना कोई कर्ता है उसका , ना कोई कारण कहीं
श्रृष्टि का निर्माण करता, करता वह धारण जमीं
भूमि हिल जाती है कतिपय , वह मगर हिलता नहीं
यह यजुर्वद के 40वें अध्याय का अंश है (न कि ऋग्वेद का)
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