सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Thursday, June 2, 2011

ईश्वर का स्वरुप

औम सः परि  अगात् , शुक्रम , अकायम , अव्रणम् , अस्नाविरं , शुद्धम् , अपापविद्धं , कविः , मनीषी , परिभूः, स्वयम्भू : याथा तथ्यतः अर्थान् , व्यदधात , शाश्वतिभ्यः संबह्य I    
-ऋग्वेद
 
He is omnipresent . He is purest . He is bodiless - hence he can have no wounds .He has no muscles and no nerves . He is beyond virtues or vices . He is not created by anyone nor for any specific purpose . He knows all . He witnesses everything . He created the earth and the universe the way we see it .
 
हर जगह छाया हुआ वह, पर हमें दिखता नहीं 
पहुँचता वह हर समय है , पर हमें मिलता नहीं
 
शुद्ध है निर्मल है वह, ना कोई तन-देह है
कोई नस नाड़ी नहीं , फिर भी ना संदेह है
आता जाता हर जगह है, फिर भी वह चलता नहीं
 
ना कोई कर्ता है उसका , ना कोई कारण कहीं 
श्रृष्टि का निर्माण करता, करता वह धारण जमीं 
भूमि हिल जाती है कतिपय , वह मगर हिलता नहीं  

1 comment:

  1. यह यजुर्वद के 40वें अध्याय का अंश है (न कि ऋग्वेद का)

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