सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Wednesday, May 18, 2011

अन्न स्तुति

औम् अन्न्पतेअन्न्स्यनो देहयान मीवस्य शुष्मिणः I 
प्र प्र दातारं तारिष ऊर्ज नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे II 
 
O God ! The provider of grains ! You bless us with such grains , which may keep us free from diseases and make us healthier and stronger . We pray the same for our animals too .
 
तेरी कृपा से जन्म यह 
तेरी कृपा का अन्ना यह 
हमको मिले यूँ ही सदा 
जीवन चले यूँ ही सदा
 
इस अन्न में वो शक्ति है 
इस शक्ति में वो भक्ति है
जो रोग करके दूर सब 
देती है सारे सुख सदा
 
तेरी कृपा की छाँव में 
तेरे निराले गाँव में
इंसान तो इंसान हैं 
पशु को भी मिलता बल सदा    

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