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औम क इमं नाहुषीष्वा इन्द्रं सोमस्य तर्पयात I
औम क इमं नाहुषीष्वा इन्द्रं सोमस्य तर्पयात I
स नो वसून्या भरत II
साम: २.२.५.६
Oh God ! Kindly fill these clouds with sweet and useful water. The humanity on the earth needs it . Let these clouds bring us rains to help us grow plentiful of grains !
मेघ दो प्रभु वृष्टि दो ! सरस अमृत वृष्टि दो !
मधुर रस से तृप्त हो , शुष्कता से रिक्त हो
बादलों के दरस से , तृप्त हो वह दृष्टि दो !
धरा का श्रृंगार कर, जीव का उद्धार कर
यूँ हरित महकी रहे , ऐसी मोहक श्रृष्टि दो !
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