सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Wednesday, February 16, 2011

वृष्टि प्रार्थना

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औम क इमं नाहुषीष्वा इन्द्रं सोमस्य तर्पयात I
स नो वसून्या भरत II
                                                          साम: २.२.५.६
Oh God ! Kindly fill these clouds with sweet and useful water. The humanity on the earth needs it . Let these clouds bring us rains to help us grow plentiful of grains !  
मेघ दो प्रभु वृष्टि दो ! सरस अमृत वृष्टि दो !
मधुर रस से तृप्त हो , शुष्कता से रिक्त हो
बादलों के दरस से , तृप्त हो वह दृष्टि दो !
धरा का श्रृंगार कर, जीव का उद्धार कर
यूँ हरित महकी रहे , ऐसी मोहक श्रृष्टि दो !

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