सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Friday, December 10, 2010

मृत्यु

औम् यथा अहानि अनुपूर्वं भवन्ति यथा ऋतवः ऋतुभिः यन्ति साधु I
यथा न पूर्वं अपरः जहाति , एवा धातः
आयुन्षि कल्पय एषां II
ऋग. /१०/१८/५

Just as a day follows another day, just as one season follows another seasn in order , just like a sequence of what is gone and what will come ; similarly he (eeshwar) organises our life and death to be followed by another life.

एक जीवन का आना,एक जीवन का जाना 
इस आने जाने में , है इक पड़ाव मृत्यु  

दिन उगता है बुझता है , फिर रात घनी आती है
फिर एक नया दिन उगता , फिर रात नयी आती है
दिने के आने जाने में , है अन्धकार मृत्यु

गर्मी वर्षा फिर ठंडक , हैं ऋतुचक्र के हिस्से
वैसे ही जीना मरना , मानव जीवन के किस्से
जो आना है जाना है, जाना ही है मृत्यु
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