सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Friday, November 10, 2017

Best ever speech on Patriotism

Wednesday, November 2, 2016

Ishopanishad | Kya Moh Karun - from My new album Ishopanishad !

Monday, October 31, 2016

Ishopanishad | Kya Moh Karun By Mahendra Arya | Paritosh Saha | Devotion...

Friday, January 30, 2015

निशा मन्त्र

निशा मन्त्र - १
ओम् यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवतं सुप्तस्य तथैवैति
दूरङ्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं यन्मे मनः शिव सन्कल्पमस्तु
( ३४/ - यजुर्वेद )
Our mind travels with amazing speed. It takes us to the unbelievable distances when we are awake. It makes us travel far and wide even when we are asleep. The mind is free of restrictions. May this mind of mine be of divine qualities and of noble thoughts!
यह मन क्यों इतना भाग रहा
इसकी गति क्यों इतनी चंचल
तन सोया है मन जाग रहा

क्यों सीमाओं से मुक्त है मन
क्यों इच्छाओं से युक्त है मन
यह मन क्यों है इतना पागल
यह गाता अपना राग रहा

इतनी विनती तुमसे भगवन
चाहे कितना भी भागे मन
इसमें हरदम सुविचार रहे
बस इतना तुमसे मांग रहा

निशा मन्त्र - २
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः !
यद्पूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्मस्तु !!
( 34/2)
May the mind that enables energetic, thoughtful and determined individuals to perform acts of bravery, heroism and sacrifice, the mind that is so unique a sense with such adorable quality ; may that mind of  mine be of noble desires and determination.
मन  ही देता प्रेरणा , मन ही शक्ति अपार
मन ज्ञानी का आइना, मन ही  पुण्य विचार

मन के कारण धर्म है , मन के कारण कार्य
मन के कारण व्यग्रता , मन के कारण धैर्य

प्रभु मेरा मन शुद्ध हो , शुद्ध रहे संकल्प
इन्द्रियो का स्वामि मन , मन का नही विकल्प
निशा मन्त्र - ३
यत्प्रज्ञानमुत चेतोधृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु !
यस्मान्न ऋते किञ्चिन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसंकल्मस्तु !!
( 34/3)
Mind which experiences new as well as past experiences, that recollects the memories of the past, that provides a shield of endurance in difficult times, which works like a lighthouse in stormy times of senses, and without whose determination nothing can be done; may that mind of mine be of noble thoughts and aspirations .
मन के कारण चेतन मैं , प्रभु !
मन से है व्यवहार
मन में भरे पुरातन अनुभव
मन में नए विचार

वर्तमान के साथ चले मन
मन  में रहे अतीत 
मन भविष्य के भेद समझता
हर क्षण होय व्यतीत

मन मेरा जीता हर क्षण को
मन नित होय प्रबुद्ध
मन में भरो विचार प्रभो यूँ
मन हो निर्मल शुद्ध
निशा मन्त्र - ४
येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतममृतेन सर्वम्  !
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता  तन्मे मनः शिवसंकल्मस्तु !!
( 34/4)
Mind that is the source of all knowledge and perception of the past, present and future and that performs the yajna of life with seven performers; that mind of mine be of noble resolves and aspirations !
मन मेरा है जोड़ता
वर्तमान से भूत
और भविष्य की सोच से
कर देता अविभूत

इन कड़ियों के जोड़ से
जीवन बनता यज्ञ
आहुति जिसमे डालते
होता सात सुविज्ञ

जीवन मेरा यज्ञमय
बना  रहे परमेश 
मन में ऐसी प्रेरणा
देते रहें हमेश

निशा मन्त्र - ५
यस्मिन्नृचः सामयजू न्षि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभिवारा: !
यस्मिश्चित्तम् सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्मस्तु !!
( 34/5)
Mind, like a wheel of chariot, is fitted with spokes of hymns of Vedas and that is overwhelmed with energy of all living beings; that mind of mine be of noble thoughts and resolves.
रथ के पहिये को सँभालते
जैसे है शहतीर
देते हैं मजबूती रथ को
जिसे चलाते वीर

तन भी तो है रथ के सदृश्य
सड़कें समय समान
जीवन है एक रण  मनुष्य का
मन के हाथ कमान

मेरे रथ के चारों पहिये
चारों वेद समान
और बने शहतीर ऋचाएं
मन में निर्मल ज्ञान 

निशा मन्त्र - ६

सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान नेनीयते भीषुजिर्वाजिन इव !
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसंकल्मस्तु !!
( 34/6)
Mind like the controller of a speedy chariot controls the movement by pulling and releasing the leashes; that mind of mine be good controller of my life and be of noble resolves and thoughts.
अश्व खींचते जैसे रथ को
शक्ति से अविराम
किन्तु सारथी उन अश्वों की
खींचे नित्य लगाम

बिना सारथी रथ के घोड़े
रथ को देंगे तोड़
बिना नियंत्रण के हर शक्ति
ले विनाश का मोड़

इन्द्रियाँ सारी चले अश्व सी
मेरा सारथी मन
शुभ संकल्पों वाला ये मन

करे नियंत्रित तन

Thursday, June 26, 2014

ईशोपनिषद मन्त्र - १७

हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम
यो सावादित्ये पुरुषः सोसावाहम्  I  औम  खं  ब्रह्म II 17 II  

तू है व्याप्त सदा इस जग में 
सूर्य चन्द्र ग्रह  तारों में 
तेरा रूप सदा दिखता  है 
फूलों और बहारों में 

यह मेरा ही अंधापन है 
मुझको नहीं दिखाई दे 
जग की झूठी चमक दमक में 
तेज तेरा न दिखाई दे 

प्रभु ! मेरे ये चक्षु खोल दो 
तुझको जान सकूं, भगवन 
मैं क्या हूँ , मुझमें क्या है 
इतना पहचान सकूँ , भगवन