वायुरनिलम
मृतमथेदं भस्मान्तं शरीरम् ।
औम् ऋतो स्मर ।
क्लिवे स्मर । कृतं स्मर II 15 II
पञ्च महाभूतों
से निर्मित
तन - जिसमें
तल्लीन है
पञ्च महाभूतों
में इक दिन
मिल कर होय
विलीन हैं
उस क्षण को तू
सोच अभी ले
प्राण पखेरू
जाते जब
जीवन को तू उसी
सोच से
यूँ परिपक्व बना
ले अब
सब कुछ नश्वर है
तेरा बस
अमर आत्मा होती
है
उत्तम कर्म सुमर जीवन के
वो निधि
संचित होती है
इस शरीर के बाद
नहीं है
इस शरीर का मान
रे
यात्रा का अंतिम
पड़ाव है
सब का ही शमशान
रे
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