अन्यदेवाहुः
सम्भवादन्यदाहुरसम्भवात ।
इति शुश्रुम्
धीराणां ये नस्त्द्विचचक्षिरे II 10 II
अध्ययन करे इस
सृष्टि का
इस धरा का , और वृष्टि का
जो खोजते आरोग्य
को
हर वस्तु को हर भोग्य को
उपदेश देकर
ज्ञान का
उपकार कर इंसान
का
अध्यात्म को कुछ
मानते
ईश्वर को जो
पहचानते
जो ढूंढते उस
शक्ति को
वो कर रहे तप भक्ति को
उपकार वो भी कर
रहे
कल्याण जग का कर
रहे
हैं रास्ते दोनों सुनो
तुम रास्ता जो
भी चुनो
इस लोक का
कल्याण हो
उस लोक की पहचान
हो
उपकार करना
विश्व का
कल्याण
करना विश्व का
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