अन्धन्तमः
प्रविशन्ति ये सम्भूति मुपासते ।
ततो भूय इव ते तमो
य उ सम्भूत्यां रताः II 9 II
बस प्रकृति को ही जानते
बस सत्य उसको
मानते
जो पूजते जड़
प्रकृति को
सच मानते इस
प्रवृति को
वो डूबते संसार
में
वो डूबते अंधकार
में !
जो ढूंढते हैं
सृष्टि में
अपनी ही कल्पित
दृष्टि में
उस शक्ति दिव्य स्वरुप
को
इक कल्पना के
रूप को
वो भी हैं यूँ
कुछ अटकते
अंधकार में ही
भटकते !
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