यस्मिन्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः
।
तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः
II 7II
One who is in full knowledge and spiritual wisdom – the whole world
becomes one and a part of the Supreme Lord; for him there is no illusion or
delusion nor is there any sorrow.
क्या मोह करूँ
क्या शोक करूँ
सब कुछ मेरा
सब कुछ तेरा
जब भेद नहीं
मतभेद नहीं
फिर राग नहीं
फिर द्वेष नहीं
जब मैं सब में
जब तू सब में
फिर कष्ट कहाँ
फिर दुःख कहाँ
No comments:
Post a Comment