यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्ने
वानुपश्यति I
सर्व भूतेषु चात्मानं ततो न विचिकित्सति
II 6 II
One who
perceives all living beings in Him, the Supreme Lord, and the Supreme Lord
pervading in all living beings- will never drift away from the reality of the
world hence will never do any sinful act and will not nurture any hatred for
anyone.
सब मुझ में हैं
मैं सब में हूँ
सब उसमें हैं
मैं उसमें हूँ
फिर मैं क्या
हूँ
फिर सब क्या हैं
हम हैं क्या कुछ
बस वो सब कुछ
वो मेरा है
मैं उसका हूँ
सब उसका है
वो सबका है
No comments:
Post a Comment