ईशा वास्यम् इदम् सर्वम् , यत् किञ्च जग्त्यम् जगत् ।
तेन् त्यक्तेन् भुञ्जिथा : , मा ग्रुध : कस्य् स्वित् धनम् ।। 1 ।।
(यजु. ४०/1)
He, the Supreme Lord, is present in all the
animate and inanimate of the world and he is providing the energy and movement
to this world. One can enjoy the wealth of this world not by coveting to
possess it but by being benefitted with a feeling that The Lord is the owner of
it all. This conscious awareness will keep one away from worldly grief and will
provide purest form of pleasure of life.
गति कोई तो देता है कण कण में
गति को गति देता है जो क्षण क्षण में
पूरे ब्रह्माण्ड का जो इक स्वामी है
मौजूद हर जगह अंतर्यामी है
सब कुछ उसका , उसकी ही सत्ता है
उसकी मर्जी से हिलता पत्ता है
धरती वाले तू इतना जान ले
ना है तेरा अपना कुछ , मान ले
उपभोग करो इस जग की संपत्ति का
उपकार समझ करइसको भूपति का
निर्लिप्त भाव से जीवन को जी ले
उसकी किरपा का अमृत रस पी ले
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