ओम् यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवतं सुप्तस्य तथैवैति ।
दूरङ्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं यन्मे मनः शिव सन्कल्पमस्तु ।
( य ३४/१ - यजुर्वेद )
Our mind travels with amazing speed. It takes us to the unbelievable distances when we are awake . It makes us travel far and wide even when we are asleep . The mind is frr of restrictions. May this mind of mine be of divine qualities and of noble thoughts.
यह मन क्यों इतना भाग रहा
इसकी गति क्यों इतनी चंचल
तन सोया है मन जाग रहा
क्यों सीमाओं से मुक्त है मन
क्यों इच्छाओं से युक्त है मन
यह मन क्यों है इतना पागल
यह गाता अपना राग रहा
इतनी विनती तुमसे भगवन
चाहे कितना भी भागे मन
इसमें हरदम सुविचार रहे
बस इतना तुमसे मांग रहा
वेद हमारे सबसे पुराने ग्रन्थ हैं. सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने अपना ईश्वरीय ज्ञान चार ऋषियों - अग्नि आदित्य वायु और अंगिरा के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा था . वेद चार हैं - ऋगवेद, यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्व वेद . वेद में हैं अनेकोनेक श्रुतियां - जो की संस्कृत में लिखे मंत्र या श्लोक के रूप में हैं . इन श्रुतियों में क्या वर्णित है , उनकी चर्चा हम करेंगे इस ब्लॉग वेद-सार में.
सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .
Wednesday, August 25, 2010
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mitr!
ReplyDeleteextremely good effort to make alive sanskrit and sanskriti.